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मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

शनिदेव मैं सुमिरौं तोही। विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥ तुम्हरो नाम अनेक बखानौं। क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥

शिव चालीसा - जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला.

अर्थ: हे शिव शंकर भोलेनाथ आपने ही त्रिपुरासुर (तरकासुर के तीन पुत्रों ने ब्रह्मा की भक्ति कर उनसे तीन अभेद्य पुर मांगे जिस कारण उन्हें त्रिपुरासुर कहा गया। शर्त के अनुसार भगवान शिव ने अभिजित नक्षत्र में असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण चलाकर उनका संहार किया था) के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

करत कृपा सब के घटवासी ॥ दुष्ट सकल नित Shiv chaisa मोहि सतावै ।

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को shiv chalisa lyricsl देख नाग मुनि मोहे॥

क्षमहु नाथ अब चूक shiv chalisa in hindi हमारी ॥ शंकर हो संकट के नाशन ।

कभी-कभी भक्ति करने को मन नहीं करता? - प्रेरक कहानी

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